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एक मुलाकात प्रसि्द्ध कवि ताऊ शेखावाटी जी के साथ...........!

आज ताऊ शेखावाटी जी का सवाई माधोपुर से फ़ोन आया कि वे 7 जुन को मेरे पास पहुंच रहे हैं, तो याद आया कि उन पर एक पोस्ट पेंडिंग है, ताऊ जी के साथ मैने 1998 में नासिक में कविता पढी थी, तब मेरा ताऊ जी से प्रथम परिचय हुआ था। ताऊ जी राजस्थानी के माणीता कवि हैं। मायड़ भाषा में लिखते हैं उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं सैकड़ों सम्मान एवं पुरस्कार मिल चु्के हैं। जब ताऊ जी से मिलने श्याम मंदिर में पहुंचा तो ताऊ जी भी उसी निराले अंदाज में मिले हंसते हुए खिलखिलाते हुए। मेरे साथ-साथ अहफ़ाज रसीद भी पहुंच चुके थे। ताऊ जी से चर्चा हुयी, उन्होने समय मिलने पर अभनपुर आने को कहा। फ़िर रात को उनका फ़ोन आया कि उनकी माता जी तबियत खराब है, वे तुरंत ही वापस जाना चाहते हैं, दुबारा आएंगे तो जरुर रुकेंगे एक सप्ताह्। अहो भाग्य जो उनका सानि्ध्य मुझे प्राप्त होगा। इसी बीच समाचार मिला कि उनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया। 94वर्ष की थी।
ताऊ शेखावाटी के नाम से प्रसिद्ध सीताराम जी जांगिड़ का जन्म मन्नालाल जी के घर 17सितम्बर 1942को राम गढ शेखावाटी जिला सीकर राजस्थान में हुआ था। इन्होने मेकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की लेकिन स्वतंत्र लेखन राजस्थानी छंद बद्ध काव्य लेखन में इन्हे महारत हासिल है। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर राजस्थान की कक्षा 10वीं 11वीं के अनि्वार्य हिन्दी सहित 12वीं  के पाठ्यक्रम में इनकी रचनाएं पढाई जाती हैं। हास्य के अग्रिम पंक्ति के कवि ताऊ शेखावाटी ने देश-विदेश में कविता पाठ कर मंचों की शोभा बढाई है। दूरदर्शन में इनकी बहुत सारी रचनाएं प्रकाशित प्रसारित हुयी। हाय, तुम्हारी यही कहानी, उपन्यास सहित, बावळा रा सोरठा, मीराँ-राणाजी संवाद, एव हम्मीर महाकाव्य जैसी कालजयी कृतियों का सृजन कि्या । इनके  हेली सतक सवाई से एक रचना प्रस्तुत हैं।

हेली! हेलो पड़याँ

खिलती कळियाँ गळियाँ सौरम, फ़ूट्याँ सरसी ए।
हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥

मत आँचल री आग अँवेरे
ढलसी जोबन देर-सबेरै
झूठी उलट सुमरणी फ़ेरै
पकतो आम डाळ एक दिन, टूटयाँ सरसी ए।

हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥

 कंचन काया का कुचमादण!
क्युँ हो री है यूँ उनमादन
हठ मत पकड़ हठीली बादण
लख जतन कर एक दिन लंका लुट्याँ सरसी ए।

हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥

ढाळ जठीणै ढळसी पांणी
आकळ बाकळ मत हो स्याणी!
डाट्यो भँवर डटै कद ताणी
फ़ूल्योड़ा फ़ूलड़ा जग 'ताऊ' चूंटयाँ सरसी ए।

हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥

शब्दार्थ
हेली=हवेली=काया आत्मा का घर
हेलो=आवाज देना, जब बुलावा आएगा
छूट्याँ सरसी ए=छोड़ना ही पड़ेगा, बिना छोड़े नही बनेगा


दिल्ली यात्रा 3... मैट्रो की सैर एवं एक सुहानी शाम ब्लागर्स के साथ.......!

कितना वह मजबूर था--श्रमिक दिवस पर विशेष

आज एक मई श्रमिक दिवस है, श्रम शील हाथों को समर्पित एक पुरानी रचना पेश कर रहा हुँ। आशा है कि आपको पसंद आएगी। 


दुनिया बनाई देखो उसने कितना वह मजबूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था

चंहु ओर हरियाली की  देखो एक चादर सी फैली है 
यही देखने खातिर उसने भूख धूप भी झेली है 
अपने लहू से सींचा धरा को वह भी बड़ा मगरूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था

महल किले गढ़े हैं उसने, बहुत ही बात निराली है
पसीने का मोल मिला ना पर खाई उसने गाली है 
सर छुपाने को छत नहीं है ये कैसा दस्तूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था

पैदा किया अनाज उसने, पूरी जवानी गंवाई थी
मरकर कफ़न नसीब न हुआ ये कैसी कमाई थी
अपना सब कुछ दे डाला था  दानी बड़ा जरूर था 
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था

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